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उसने गांधी को क्यूँ मारा - प्रभात प्रणीत
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उसने गांधी को क्यूँ मारा

पाठ :

बात स्कूल के दिनों की है जब मेरे एक मित्र ने मुझे बताया था कि गांधी जी की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वह पाकिस्तानियों को 55 करोड़ रु. देने की जिद पर अड़े हुए थे, वह भी तब जब पाकिस्तानी कश्मीर हड़पने की कोशिश में थे I लंबे समय तक यह बात मेरे जेहन में रही, तब जानकारी के स्रोत कम थे और मैं यह समझता रहा कि भले ही गांधी की हत्या नहीं होनी चाहिए थी, वह अनर्थ था लेकिन उस वक्त गांधी जी भी कुछ भूल कर रहे थे I एक कोमल मन में इस तरह की गलतफहमी का बस जाना और लंबे समय तक रहना मेरी समझ से हमारे समाज, देश की चेतना निर्माण के लिहाज से काफी दुर्भाग्यपूर्ण है I ऐसी महत्वपूर्ण बातें जो हमारे देश की पीढ़ियों की पहले मनोदशा फिर दिशा और दशा का निर्धारण करती हैं उनसे संबंधित प्रोपगंडा आधारित असत्य का सत्य के रुप में स्थापित होना घातक है I

यदि उन दिनों मेरे पास अशोक कुमार पांडेय सर की किताब “उसने गांधी को क्यों मारा” मौजूद होती तो शायद मैं लंबे समय तक उस नाजायज भ्रम का शिकार नहीं हुआ होता I यह भ्रम दरअसल इस देश में मनुस्मृति को आधुनिक स्वरूप में लागू करने की आकांक्षा पाले, अंग्रेजों की चापलूसी करने वाले वास्तविक देशद्रोही तत्वों की उसी साजिश का देन था जिसके तहत इन्होंने गांधी की हत्या भी की थी I गांधी की हत्या की इस साजिश और इससे जुड़े तमाम आयामों पर प्रमाणिक सन्दर्भ और साक्ष्य के साथ ठोस विमर्श करती मेरी समझ से यह हिंदी की पहली किताब है I मेरी तो इच्छा है कि यह देश के तमाम हिंदी भाषियों के हाथ में होनी चाहिए, सिर्फ इसलिए नहीं कि हमने गांधी को सस्नेह राष्ट्रपिता का दर्जा दे रखा है बल्कि इसलिए क्योंकि जिन मूल्यों और आदर्शों की खातिर इस देश की आजादी को बमुश्किल प्राप्त किया गया है उन्हें नष्ट करने की साजिश आजादी प्राप्ति के पहले से इस देश में चली आ रही है जो आज तक कायम है और जिसका सबसे बड़ा हथियार झूठ, प्रोपगंडा है जिसे यह किताब बख़ूबी खारिज करती है I

जिस तरह जर्मनी ने आने वाली पीढ़ियों के लिए हिटलर के गुनाहों को सविस्तार बताने और आगाह करते रहने की व्यवस्था कर रखी है उसी तरह हमारे देश में भी यदि ऐसी कोई व्यवस्था की गई होती और इस तरह की किताबें पाठ्यक्रम में ही आसानी से मौजूद होती तो लोग समझ पाते कि गांधी, बोस, भगत सिंह, नेहरू, पटेल की कुर्बानियों को नष्ट करने के आकांक्षी तत्व वास्तव में कौन थे? वह कौन लोग थे जो सर्वधर्म समभाव, समरस समाज और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना जैसे महान उद्देश्य के रास्ते में रुकावटें पैदा कर रहे थे? अशोक सर के शब्दों में कहें तो गांधी, नेहरू ऐसे तत्वों को अपने उन मंसूबों की राह का सबसे बड़ा रोड़ा लगते थे जिनमें वह मनुस्मृति पर आधारित एक ऐसा राष्ट्र बनाना चाहते थे जहाँ वे तानाशाही चला सके I ये तत्व खुद को हिंदू पक्ष का प्रवक्ता समझते थे और जिन्ना के पाकिस्तान के बरअक्स एक हिंदू पाकिस्तान के निर्माण का अवसर चाहते थे I

अंग्रेजो से बार-बार क्षमा याचना, दया याचना करने वाले, उनसे पेंशन पाने वाले सावरकर द्वारा प्रस्तावित हिंदू राष्ट्र ऐसा ही हिटलरशाही का मॉडल था जिनके दिग्भ्रमित, गैरजिम्मेदार शागिर्दों गोडसे, आप्टे आदि ने 80 साल के गांधी की हत्या कर अपने वहशीपन का सबूत दिया I जैसा कि इस किताब में सविस्तार बताया गया है कि इनके पास अपने इस अपराध को स्वीकारने का नैतिक बल तक नहीं था, पहले तो ये लोग खुद को बचाने का हर संभव यत्न करते रहे और जब पकड़े गए तो झूठ, प्रोपगंडा के आधार पर खुद को महान उद्देश्य वाला शहीद साबित करने की बचकानी कोशिश करने लगे I इसी क्रम में गोपाल गोडसे ने झूठ से भरी, तथ्यविहीन किताबें भी लिखी जो आज कल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के डिग्रीधारकों का आधार ग्रन्थ है I

उनके प्रोपगंडा को समझने के लिये मैंने संयोग से गोपाल गोडसे और नाथूराम गोडसे के नाम से प्रकाशित किताबें भी पढ़ी है जिनके झूठ, कपोर कल्पना पर आधारित तमाम कुतर्कों का अशोक सर ने सिलसिलेवार ढंग से अपनी किताब में माकूल और तथ्यात्मक जवाब दिया है I उन किताबों में एक व्यक्ति के वक्तव्य के अलावा कुछ भी नहीं है जो कि संदर्भ और तथ्य नहीं बताये जाने के कारण स्वतः झूठ का पुलिंदा बन जाता है जबकि इस किताब में तमाम महत्वपूर्ण बातों से संबंधित प्रमाणिक सन्दर्भ और तथ्य वर्णित है I

इस किताब की एक विशेषता यह तो है ही कि इसमें गांधी हत्या की पृष्ठभूमि तैयार करने वाली प्रमुख संस्था हिंदू महासभा और विशेषकर सावरकर के दोहरे व खोखले चरित्र को स्पष्ट कर दिया गया है लेकिन मेरी समझ से इससे बड़ी विशेषता यह है कि इस किताब में महात्मा गांधी के विचार, सिद्धांत, व्यवहार और आदर्शों के संबंध में गंभीर विवेचना की गई है I जैसे गांधी के उपवास विषय पर एक खास अध्याय रखा गया है जिसमें न सिर्फ उपवास के पीछे के उनके उद्देश्य समझने की कोशिश की गई है बल्कि इससे संबंधित उठने वाले तमाम आलोचनात्मक प्रश्नों के जवाब भी तलाशे गये हैं I इसके अलावा गांधी को विभाजन का दोषी बताने, भगत सिंह को बचाने की कोशिश न करने जैसे दुष्प्रचार का भी सटीक तथ्यपरक उत्तर दिया गया है I

यह अलग बात है कि इस तरह के नाजायज, भ्रामक प्रश्न भी उसी दक्षिणपंथी, हिंदू महासभा धारा के लोग जानबूझकर खड़ा करते हैं जो खुद एक समय न सिर्फ जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन कर रहे थे बल्कि सिंध और बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ सरकार भी चला रहे थे I उसी समय एक तरफ तो सिंध में जब पहली बार भारत के किसी विधानसभा द्वारा पाकिस्तान के निर्माण हेतु प्रस्ताव पारित किया गया तो ये लोग मौन थे तो दूसरी तरफ इनके आदर्श श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल की सरकार में मुस्लिम लीग के सहभागी के रूप में अंग्रेजों को “भारत छोड़ो आंदोलन” को कुचलने के उपाय बता रहे थे I

राजनीतिक और सामाजिक जीवन में मतैक्य का न होना स्वाभाविक है, गांधी के सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह से वैचारिक मतभेद थे लेकिन जैसा कि इस किताब में बताया गया है इनमें एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना कायम थी I बोस ने तो गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दी थी और भगत सिंह युवाओं से नेहरू के विचारों से प्रेरणा लेने के लिये कह रहे थे I चूंकि इनका उद्देश्य एक था, पवित्र था, स्वप्न सर्वधर्म समभाव वाले समरस समाज के स्थापना की थी इसलिए वे एक दूसरे को क्षति पहुंचाने की बात सोचना तो दूर अनादर भी नहीं कर सकते थे I लेकिन दूसरी तरफ आज देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने वालों के आदर्श दक्षिणपंथी हिंदू महासभा, सावरकर जैसे तत्व तो गांधी की हत्या करने पर तुले थे जिसमें वे सफल भी रहे I

गांधी से गंभीर वैचारिक मतभेद तो कम्युनिस्टों और मुस्लिम कट्टरपंथियों के भी थे, लेकिन इनमें से ने किसी ने उनकी हत्या का प्रयास नहीं किया I फिर आखिर तथाकथित हिंदुत्व विचारधारा के लोग ही उन्हें मारना क्यों चाह रहे थे? जैसा कि अशोक सर ने इस किताब में प्रश्न किया है कि ये तत्व तब इतनी नफरत जिन्ना से क्यों नहीं कर रहे थे, न ही उनकी हत्या करने के बारे सोच भी रहे थे और न ही ऐसा कोई प्रयास किया ही गया I यह बाजिव सवाल है कि आखिर इन्हें अपना बड़ा दुश्मन जिन्ना के बदले गांधी क्यों दिख रहे थे जिनकी हत्या के बाद औपचारिक दुख व्यक्त करना तो दूर असुरों की तरह इन्होंने जश्न भी मनाया I

यह बात सभी जानते हैं कि 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने इस मुल्क पर हुकूमत करने के लिए ‘बांटो और राज करो’ को अपना मुख्य नीति बनाया, इस हिसाब से उस दौर में जो भी सच्चे देशभक्त होंगे उनकी पहली प्राथमिकता क्या होनी चाहिए थी? यही न कि वे अंग्रेजो के इस मंसूबे को पूरा न होने दे और आपस में मिल जुल कर रहें, हिंदू-मुस्लिम, जात-पात की खाई को मिटाकर रखें जिस उद्देश्य से गांधी, बोस, भगत सिंह, मौलाना आजाद और काँग्रेस के तब के नेताओं ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था, लेकिन तब मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा जैसे संगठन क्या कर रहे थे? विडंबना यह है कि जो सावरकर 1857 की सबसे मुख्य विशेषता हिंदुओं मुसलमानों का एकजुट होकर अंग्रेजो के विरुद्ध होना खड़ा बताते हैं वही सावरकर बाद के दौर में अंग्रेजो के मददगार बनकर जिन्ना के साथ हिंदू और मुसलमानों के बीच खाइ पैदा कर रहे थे और इस तरह अंग्रेजों की मदद कर रहे थे I

आजादी की लड़ाई के समय अंग्रेजों से दोस्ती निभाने वाले, अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति में जिन्ना के साथ मदद करने वाले ये तथाकथित हिंदू धर्म के पैरोकार आज अपने पापों को छुपाने के लिये जिस तरह सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस और भगत सिंह के नामों को सहारा लेकर प्रोपगंडा करते हैं, सच्चाई तो यह है कि यदि इन नेताओं के विचारों, भाषणों को भी संकलित कर तमाम देशवासियों को पढ़ा दिया जाये तो इन्हें मुँह छुपाने के लिये भी कोई जगह नहीं मिलेगी I इसी उद्देश्य से इस किताब में भगत सिंह, सरदार पटेल और सुभाष चन्द्र बोस के कई वक्तव्यों को जगह दी गई है जिससे इस किताब की प्रासंगिकता, व्यापकता और बढ़ जाती है I

इस दौर में जब मनगढ़ंत इतिहास लिखने और इतिहास को बदलने की साजिश हो रही है तब ऐतिहासिक तथ्यों को बतलाती और सच्चाई बताती इस किताब का होना सुकूनदेय है और इसलिए अशोक कुमार पांडेय सर और राजकमल प्रकाशन को धन्यवाद कहे बिना नहीं रह सकता I

हिंदुस्तान के हिंदू पाकिस्तान बनने का खतरा आजादी के समय से इस देश पर मंडराता रहा है और इस बात को काफी हद तक तब के राष्ट्र निर्माता और खासकर गांधी जी बखूबी समझते थे और जैसा कि इस किताब में वर्णित है तभी गांधी जी ने कहा था- “आज मैं हिम्मत के साथ का सकता हूँ कि पाकिस्तान एक पाप है………आज मुझे शर्म के साथ कहना पड़ रहा है कि हम लोग सचमुच पाकिस्तान की बुराइयों की नकल कर रहे हैं I” अफसोस की बात यह है कि गांधी जी की कही बात आज तब से बड़ा और भयावह सच है और यही हमारा दुर्भाग्य है, आशा है यह किताब इसे रोकने की दिशा में एक सार्थक प्रयास सिद्ध हो पाएगी I

इस किताब को जरूर पढ़िए, अपने अपनों को पढ़ाइये, अपने घर की आलमीरा में सहेज कर रखिये और बौद्धिक सत्याग्रह का हिस्सा बनने का गौरव, संतोष पाइये I सहेजना और बाँचना दोनों जरूरी है क्योंकि सारी पहरेदारी, आक्रमण तो सत्य पर ही है, उनका सारा साम्राज्य तो असत्य पर ही खड़ा है I

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